Supriya Suraj Gupta, Jabalpur.
Dharm: महालक्ष्मी व्रत हिंदू धर्म के प्रमुख व्रतों में से एक है, जिसे विशेष रूप से महिलाएं परिवार की समृद्धि, सुख-शांति और घर में धन-संपत्ति की प्राप्ति के लिए करती हैं। यह व्रत पितृ पक्ष के दौरान आता है, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण समय होता है, जब पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस समय देवी-देवताओं की पूजा सामान्य रूप से नहीं की जाती क्योंकि माना जाता है कि वे विश्राम कर रहे होते हैं या अपने तीर्थ धामों में लौट जाते हैं। हालांकि, महालक्ष्मी व्रत इस नियम का अपवाद है और इसमें देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है।
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महालक्ष्मी व्रत की पौराणिक कथा
Dharm: महालक्ष्मी व्रत के साथ एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, जो इसकी महत्ता को और भी बढ़ाती है। महाभारत के समय, जब माता कुंती और पांडव वनवास में थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने कुंती को इस व्रत का महत्व बताया। कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने कुंती को महालक्ष्मी व्रत करने का परामर्श दिया ताकि उनके खोए हुए वैभव और समृद्धि की पुनः प्राप्ति हो सके। इस व्रत की विधि का पालन करके पांडवों को उनका खोया हुआ राज्य और सम्मान वापस मिला। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि महालक्ष्मी व्रत केवल आर्थिक समृद्धि के लिए ही नहीं, बल्कि जीवन में खोई हुई चीजों की पुनः प्राप्ति और सकारात्मक ऊर्जा को वापस लाने का प्रतीक है।
पितृ पक्ष में देवी लक्ष्मी की पूजा
Dharm: पितृ पक्ष के दौरान हिंदू धर्म में कोई भी देवी-देवता की पूजा नहीं की जाती है, क्योंकि यह समय पूर्वजों को समर्पित माना जाता है। इस समय लोग श्राद्ध और तर्पण करते हैं ताकि उनके पितरों की आत्मा को शांति मिले। लेकिन महालक्ष्मी व्रत एकमात्र ऐसा अवसर है, जब इस समय भी देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसका कारण यह है कि महालक्ष्मी व्रत का उद्देश्य परिवार की समृद्धि और सुख-शांति के लिए देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करना होता है।
इस व्रत में देवी लक्ष्मी को विशेष रूप से हाथी पर विराजमान किया जाता है। यह पूजा बहुत ही शुद्धता और नियमों के साथ की जाती है। माना जाता है कि हाथी धन और वैभव का प्रतीक है, और देवी लक्ष्मी का हाथी पर विराजित होना, इस बात का प्रतीक है कि देवी लक्ष्मी के साथ-साथ धन-समृद्धि और शांति भी घर में आती है।
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व्रत की विधि
Dharm: महालक्ष्मी व्रत की विधि बहुत विस्तृत और अनुशासनिक होती है। इस व्रत को करने से पहले घर की अच्छी तरह से सफाई की जाती है, ताकि वातावरण शुद्ध और पवित्र हो सके। इसके बाद व्रती महिलाएं स्नान करके साफ कपड़े पहनती हैं और पूजा की तैयारी करती हैं। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए 16 प्रकार के भोग बनाए जाते हैं। यह भोग देवी लक्ष्मी को समर्पित किए जाते हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार के मिठाइयां, फल, और पकवान शामिल होते हैं।
पूजा में देवी लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर को हाथी पर विराजित किया जाता है, जिसे धूप, दीप, फूल, और नैवेद्य के साथ पूजित किया जाता है। इस पूजा के दौरान महिलाएं देवी लक्ष्मी से अपने परिवार के सदस्यों के लिए सुख, समृद्धि, और दीर्घायु की कामना करती हैं। यह भी माना जाता है कि इस व्रत को करने से घर में आर्थिक तंगी और दुर्भाग्य दूर होते हैं, और धन-वैभव का संचार होता है।
व्रत के नियम और पालन
Dharm: महालक्ष्मी व्रत का पालन बहुत ही कठोर नियमों के साथ किया जाता है। इस व्रत को करने वाली महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं और केवल फलाहार करती हैं। व्रत के दौरान मन, वचन और कर्म की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन झूठ बोलने, किसी का दिल दुखाने या नकारात्मक विचार रखने से बचना चाहिए। साथ ही, इस व्रत के दौरान मानसिक शांति और समर्पण का भाव होना आवश्यक है, ताकि देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके।
व्रत की मान्यता
Dharm: महालक्ष्मी व्रत की मान्यता है कि जो महिलाएं इसे सच्चे मन और श्रद्धा के साथ करती हैं, उनके घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत के प्रभाव से घर में सुख-समृद्धि, शांति और परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम बना रहता है। यह व्रत न केवल भौतिक संपत्ति को बढ़ाता है, बल्कि जीवन में मानसिक संतुलन और शांति भी लाता है।
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व्रत एक धार्मिक अनुष्ठान
Dharm: महालक्ष्मी व्रत एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे हिंदू महिलाएं बड़ी श्रद्धा और समर्पण के साथ करती हैं। इस व्रत का उद्देश्य न केवल आर्थिक समृद्धि प्राप्त करना है, बल्कि घर-परिवार की खुशहाली और शांति को बनाए रखना भी है। पौराणिक कथा और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर, इस व्रत का विशेष महत्व है और इसे सही तरीके से करने से जीवन में हर प्रकार की कठिनाइयों का अंत होता है। देवी लक्ष्मी की पूजा और व्रत के इस अवसर पर महिलाएं अपनी समृद्धि और वैभव को पुनः प्राप्त करने की कामना करती हैं, जिससे उनके जीवन में खुशहाली का संचार हो।